बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना न दी जाये: सुधीर कालड़ा

कार्पोरल पनिशमेंट के उन्मूलन के लिए आयोजित हुई कार्यशाला
अम्बाला 20 अक्तूबर | जिला स्तर पर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के तत्वाधान में कार्पोरल पनिशमेंट के उन्मूलन के लिए अग्रवाल भवन, सेक्टर-9, अम्बाला शहर में जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सुधीर कालड़ा की अध्यक्षता में कार्यशाला का आयोजन किया गया l इस कार्यशाला में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के प्रतिनिधि प्रेम सोलंकी व् अर्जिता बोस, राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य श्याम शुक्ला व् अनिल कुमार लाठर, डाईट प्रधानाचार्या रेनू अग्रवाल, जिला एफ एल एन समन्वयक मनोज कुमार, जिले के सभी खंड शिक्षा अधिकारी, जिले के सभी संकुल मुखिया, सभी सहायक परियोजना समन्वयक, डाईट प्राध्यापकों सहित निजी स्कूलों के मुखियाओं सहित लगभग 150 लोगों ने भाग लिया l इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 17 के अनुपालन के लिए जागरूकता फैलाना था जिसके आधार पर बच्चों को शारीरिक व मानसिक दंड देना निषेध है l
कार्यक्रम की शुरुआत जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सुधीर कालड़ा के स्वागतीय अभिभाषण से हुई l उन्होंने सभी उपस्थित सदस्यों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 17 का गंभीरता से पालन करने के निर्देश दिए तथा बताया कि बच्चों को शारीरिक व मानसिक दंड देना निषेध है लेकिन इस धारा के प्रति हमारी अज्ञानता और उदासीनता का ही परिणाम है कि मानसिक प्रताड़ना का शिकार बच्चे आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते हैंl डाईट प्राध्यापक विकास कुमार ने अपने वक्तव्य में बच्चों की मनोस्थिति को समझने में अध्यापक की भूमिका विषय पर अपने विचार रखे l उन्होंने बताया कि प्रत्येक बच्चे में कुछ न कुछ खूबी अवश्य होती है तथा एक अध्यापक ही उस खूबी को निखार कर जीवन में बच्चे को आगे बढ़ा सकता है l राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा कार्पोरल पनिशमेंट के उन्मूलन के लिए तैयार विस्तृत दिशा निर्देशों पर चर्चा की गयी l राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की रिसोर्स पर्सन मनोवैज्ञानिक डॉ० गीतांजलि ने बताया कि मनुष्य का दिमाग एक समय एक ही विषय पर 40 मिनट तक ध्यान दे सकता है या एकाग्र रह सकता है परन्तु बच्चों की दशा में यह 15 मिनट रह जाता है l ऐसे में उनका ध्यान केन्द्रित करने के लिए उनके साथ गतिविधियों में लगे रहना चाहिए l इसके साथ साथ उन्होंने कोरोना काल के दौरान बच्चों में हुए बदलावों के बारे में उपस्थित सदस्यों से विचार साँझा किये l अंत में बाल मनोवैज्ञानिक डॉ० सीमा तंवर ने बच्चों के विकास की दिशा में स्कूलों की सकारात्मक भूमिका क्या होनी चाहिए, इस विषय पर अपने विचार रखे l उन्होंने बताया कि बाल मन में शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न की गहरी छाप जीवन भर रहने एवं जीवन में असफलता के लिए जवाबदेह होती है l इसलिए बाल-मन को समझ कर ही उस के अनुरूप स्कूलों को अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिए l कार्यक्रम का अंतिम सत्र राज्य बाल संरक्षण आयोग की तरफ से आये हुए पदाधिकारियों श्याम शुक्ला व् अनिल कुमार लाठर की तरफ से रहा जिसमें उन्होंने सभी उपस्थित सदस्यों की शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 17 से संबधित सवालों तथा शंकाओं का समाधान किया